जयपुर. प्रदेश में 21 अक्टूबर को मंडवा और खींवसर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हैं। इसमें भाजपा ने मंडावा से कांग्रेस की बागी सुशीला सींघडा पर दांव लगाया है तो खींवसर सीट गठबंधन में आरएलपी के नारायण बेनीवाल के लिए छोड़ दी। दोनों ही प्रत्याशियों के लिए यह पहला विधानसभा चुनाव है। वहीं कांग्रेस ने अपने टिकट प्रभावशाली राजनेताओं के परिवारों में बांटे हैं। इसमें मंडावा का टिकट रीटा चौधरी और खींवसर का टिकट हरेंद्र मिर्धा को दिया है।
उपचुनाव की बात करें तो आंकड़ों के लिहाज से पार्टियों के लिए यह चुनाव भले ही अहमियत नहीं रखते हैं लेकिन प्रदेश में ऐसे कई दिग्गज नेता हैं जिनकी सियासी एंट्री उपचुनावों से ही हुई और आगे चलकर वे राज्यपाल, मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और कैबिनेट मंत्री तक बने। नवल किशोर शर्मा, शिवचरण माथुर, रामनिवास मिर्धा, कमला बेनीवाल सरीखे नेता प्रदेश में उपचुनावों की ही देन रहे। शिवचरण माथुर दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। शिवचरण माथुर की सियासी एंट्री 1964 में भीलवाड़ा सीट पर हुए लोकसभा उपचुनाव से हुई। इस चुनाव में शिवचरण माथुर ने अपने प्रतिद्वंदी को करीब तीन गुना अंतर से हराया। 1981 में वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 1989 में वे फिर से मुख्यमंत्री बने। इसके बाद वे असम के राज्यपाल भी बने।
इसी तरह नवल किशोर शर्मा भी 1966 में दौसा से उपचुनाव जीते। इसके बाद वे कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष और गुजरात के राज्यपाल बने। कांग्रेस की जाट राजनीति का चेहरा रहीं कमला बेनीवाल भी उपचुनावों से ही निकलीं। इसके बाद वे राजस्थान की उपमुख्यमंत्री से लेकर गुजरात और मिजोरम की राज्यपाल तक बनीं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रामनिवास मिर्धा भी उपचुनाव के जरिए ही विधानसभा पहुंचे। आगे चलकर वे नागौर में कांग्रेस के सियासी ब्रांड बने। लंबे समय तक इन नेताओं ने प्रदेश की सियासत में अपना प्रभुत्व कायम रखा।